>>: डाईकिलोफिनेक की दवा से विलुप्त हो गए थे 'प्रकृति सफाई मित्र

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कटनी. पशुओं को दी जाने वाली डाइकिलोफिनेक की दवा का भारी दुष्परिणाम हुआ। शहर व गांवों में मवेशियों के मरने के बाद गिद्ध उन्हें खाकर प्रकृति सफाई मित्र का काम करते थे। १९९० से लेकर दो से ढाई दशक तक डाइकिलोफिनेक की दवा पशुओं की दी जाती थी, पशुओं के मांस को खाने से गिद्धों की किडनी फेल हो जाती थी, और विलुप्त होने की कगार पर पहुंच गए थे। अब धीरे-धीरे कुनबा बढ़ रहा है। जिले में भी बड़ी संख्या में गिद्ध पाए जा रहे हैं। जिले में दो दिनों से गणना चल रही है। बुधवार को भी गणना चलेगी। रेंजर विजयराघवगढ़ विवेक जैन ने बताया कि दो दिन की गणना में १३० देशी गिद्ध पाए गए हैं।

जानकारी के अनुसार वन विभाग द्वारा दो चरणों में गणना कराई जा रही है। फरवरी माह में हुई गणना में १९४ गिद्ध विजयराघवगढ़ वन परिक्षेत्र में पाए गए थे। इस बार की गणना में १३० मिले हैं। यहां पर देशी गिद्ध हैं। इन गिद्धों की खासियत यह है कि ये प्रकृति को साफ रखते हैं। १९९० के पहले देशभर में ३ से ४ करोड़ संख्या होती थी, लेकिन अब गिनती के गिद्ध बचे हैं। जिले में २०२१-२२ में हुई गणना में मात्र ६४ संख्या मिली थी, जो अब बढ़कर १६४ के पास हो गई है। गर्मी में बच्चे उड़ जाते हैं, इसलिए संख्या कम आ रही है। सर्वाधिक संख्या कैमोर की पहाड़ी में है। इनका वहां पर चट्टानों के बीच बेहतर सुरक्षित आशियाना है।

आज आएगी रिपोर्ट- जिलेभर में वन परिक्षेत्र वार गिद्धों की गणना हो रही है। गणना की फाइन रिपोर्ट एक मई को आएगी, जिससे पता चल पाएगा कि वर्तमान में जिले में इन पक्षियों की संख्या कितनी बची है। पिछले वर्ष की तुलना में कितनी संख्या बढ़ी है। डीएफओ गौरव शर्मा ने बताया कि सभी रेंज अधिकारियों को वास्तविक गणना के लिए निर्देशित किया गया। गणना की निगरानी भी की जा रही है।

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